सीखने की......

इन लक्षणों से जानें कि आपके बच्‍चे में सीखने की क्षमता है कम

इसमें 15-18 महीने का बच्चा बोल नहीं पाता।यह तंत्रिका तंत्र से जुड़ी हुई समस्या है।यह पांच मात्र फीसदी बच्चों में होती है।ऐसे बच्चों में होती है कोई खास योग्यता।

पूनम अपनी तीन साल की बेटी को लगातार हाथ पकड़कर लिखाने की कोशिश कर रही थी। पिछले एक महीने के प्रयास के बावजूद पूनम की बेटी नहीं लिख पा रही थी। शुरू-शुरू में तो पूनम झुंझलाकर अपनी बेटी को मार भी देती थी। लेकिन पूरे महीने ऐसा हुआ तो पूनम ने एक दिन चिकित्सक की सलाह ली। चिकित्सक को दिखाने पर पूनम को पता चला कि उसकी बेटी लर्निंग डिसेबिलिटी से ग्रस्त है। इस बीमारी में बच्चे का दिमाग काम तो करता है लेकिन उसमें सीखने की क्षमता कम होती है। कई बार पूनम की तरह ही अन्य अभिभावक इसे बच्चे का आलसपन समझते हैं। लेकिन अगर आपको भी अपने बच्चे में नीचे लेख में लिखे ये इन लक्षण नजर आए तो तुरंत सचेत हो जाएं क्योंकि ये सीखने की अशक्तता के लक्षण हैं।

क्या है लर्निंग डिसेबिलिटी

इंसान में सीखने की अशक्तता एक न्यूरोलॉजिकल यानि तंत्रिका तंत्र से जुड़ी समस्या है जो मस्तिष्क में किसी भी तरह के संदेश को भेजने व ग्रहण करने और उसे प्रोसेस करने में अशक्त होता है। इस समस्या के दौरान बच्चा कुछ भी सीखने में असमर्थ होता है। लर्निंग डिसेबिलिटी से जूझ रहे बच्चे को पढ़ने, लिखने, बोलने, सुनने, गणित के सवालों और सूत्रों को समझने और सामान्य अवधारणाओं को समझने में कठिनाईयां आती हैं। लर्निंग डिसेबिलिटी तीन तरह की होती है जिसे डिस्लेक्सिया, डिसकैलकुलिया और डिसग्राफ़िया नाम से जाना जता है।

डिस्लेक्सिया : इस बीमारी में बच्चा होशियार तो रहता है, पर किसी शब्द विशेष को पहचानने और पढऩे में परेशानी होती है।डिस्केलकुलिया : इसमें बीमारी औसत होते हैं, पर किसी अक्षर खासकर गणित के अंकों को पहचाने में असमर्थ होते हैं।डिस्प्रेक्सिया : इस बीमारी से ग्रस्त बच्चे को बोलने में दिक्कत आती है। बैठने में समस्या होती है। 

 
कैसे करें इसकी पहचान

डेढ़ साल के बाद बच्चा बोलना औऱ चलना शुरू कर देता है। इसी उम्र में अभिभावक बच्चे को ए, बी, सी डी और क ख ग सीखाने लगते हैं। लेकिन अगर दो से तीन साल का बच्चा आपके लाख कोशिशों के बाद भी नहीं सीख पा रहा है तो इसे सीखने की अशक्तता समझें। आपके बच्चे को लर्निंग डिसेबिलिटी है। ऐसे में तुरंत चिकित्सक को दिखाएं।

दुनिया में पांच फ़ीसदी स्कूली बच्चों में लर्निंग डिसेबिलिटी की समस्या पाई जाती है। कई बार सीखने की अशक्तता के चिन्ह बचपन की हर अवस्था में मामूली रूप से अलग अलग होते हैं जिन्हें थोड़े से ध्यान देने पर पहचाना जा सकता है।

ऐसे करें पहचान 

15-18 महीने का बच्चा अगर नहीं बोलता है।  सरल और साधारण शब्दों को नहीं बोल पाता है।नियमों और निर्देशों को नहीं समझ पाता है।दाएं से बाएं के बीच अंतर कर पाने में। उदाहरण के लिए “25” को “52” समझना, “b” को “d” समझना, “on” को “no” समझना और “S” को संख्या “5” समझने में।वर्णमाला के अक्षरों को पहचानने में असमर्थ होता है।अपनी चीज़ों जैसे कॉपी किताब पेंसिल आदि का ख्याल नहीं रख पाता है।

लेकिन होती है ये असाधारण योग्यता भी

जो बच्चे लर्निंग डिसेबिलिटी से ग्रस्त होते हैं वो भले ही सारी चीजें सीखने में असमर्थ होते हैं लेकिन अपनी रुचि के क्षेत्रों में उनके पास ग़ज़ब की क्षमता, प्रतिभा और योग्यता देखी जाती है। ऐसे में केवल विकार पर ध्यान न दे। इसके लिए जरूरी है कि अभिभावक और शिक्षक बच्चे की छिपी हुई सामर्थ्य और प्रतिभा को पहचानें और बच्चे को अपनी प्रतिभा में कुछ कर दिखाने के लिए प्रोत्साहित करें
🌿Yoga Artist🌿
www.sdpsyoga.blogspot.com

Comments

Popular posts from this blog

National Yoga Championship 2020