क्यूँ बच्चों पर.....

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क्यूँ अपने बच्चों पर चिल्लाना है ग़लत?

कितने लोगों को ये ऐहसास होता है की ऊँची आवाज़ में बात करना अच्छी बात नही होती? हम अपने बच्चों को तो मधुर वाणी में बात करने का ज्ञान देते हैं परंतु कई बार खुद ही इस बात पर चलना भूल जाते हैं|

और हम माता-पिता को लगता है कि अगर बच्चों पर हाथ उठाना सख़्त ग़लत है तो कुछ बातें डाँट लगाकर या तीव्र आवाज़ में कह कर अपने बच्चों तक पहुँचाई जा सकती है|

सवाल यह है की यदि हम पर कोई चिल्लाए तो हमको कैसा लगेगा?

हम बढ़ों को यदि किसी का हम पर चिल्लाना पसंद नहीं तो बच्चे तो और भी कोमल मन के होते हैं| इसलिए ये सोचना कि कुछ बातों को तेज़ आवाज़ में अपने बच्चों से कहकर हम अपनी बात समझाने में सफल हो जायेंगें तो ये सोचना सरासर ग़लत है| उँची आवाज़ में बात करना या अपने बच्चे को डाँट- डपट कर उनकी भलाई के लिए ऐसा व्यवहार सही समझना हम माता- पिता की ग़लतफहमी है|

अंजाने में कुछ बातें माँ-बाप अपने बच्चों को कह जातें हैं, जो उनपर आगे चल कर बुरा असर डाल सकती हैं| इन्हीं बातों का ध्यान रखना हमारे लिए अति आवश्यक है|

इन 5 बातों का ध्यान रखने से आप अपने बच्चे पर बिना चिल्लाए, उसके हित की सभी चीज़ें ज्ञात करवा सकते हैं-

ऊँचा बोलना सही नही:

कई बार दूर बैठे, हम अपने बच्चों को कुछ ना कुछ कार्य करने को कह देते हैं और अपने आलस में हम बच्चों से उँची आवाज़ में बात कर बैठतें हैं| जैसे- दूर कमरे में बैठे हम बच्चों को उँची आवाज़ में बुलाकर कुछ काम करने को याद दिलाते हैं, चाहे वो उनका होम-वर्क हो या कोई और ज़रूरी कार्य| ये समझना बहुत ज़रूरी है कि ऐसी छोटी-छोटी बातों से बच्चे भी तीव्र आवाज़ में बात करना सीख जाते हैं| और ये ही आगे चल कर उनको भी चीख कर बात करना सिखा देता है|

अंजाने में आत्म-संयम खोना ग़लत है:

कभी-कभी अपनी किसी परेशानी के कारण हम बिना सोचे-समझे झल्लाकर बात कर बैठते हैं| हमारे बच्चे भी ऐसे आचरण को देख, ये बुरी आदत अपना लेते हैं| इसलिए जैसी भी स्तिथि हो, हर समय शांत रहने की कोशिश करना हम सबके लिए ज़रूरी है|

अपनी व्याकुलता में गुस्से से पेश आना सही नहीं:

कई बार हम खुद किसी बात को समझ नही पाते और इस विवशता में तेज़ आवाज़ में बात करने लग जाते हैं| हमारे बच्चे भी इस व्यवहार को देख, ऐसा आचरण अपनाने लग जाते हैं| इसलिए अपनी निराशा को आराम से बात करके भी प्रकट करने का प्रयत्न करना चाहिए|

हमारे बचपन में और हमारे बच्चों के बचपन में फ़र्कहै:

कभी- कभी बच्चों से उँची आवाज़ में बात करने पर या उनको डाँटने पर हम ये सोच लेते हैं क़ि हमें भी बचपन में कुछ बातें माता-पिता की तेज़ आवाज़ सुनने पर या गुस्सा होने पर ही समझ आई थी| पर शायद आपने भी उस वक़्त डर में, अपने माता-पिता की गुस्से से बचने के लिए वो बात मान ली होगी| तो ये ना भूलें कि आपका गुस्सा होना भी आपके बच्चों को बुरा लग सकता है| ये समझना ज़रूरी है क़ि प्यार से भी बात समझाई जा सकती है क्योंकि गुस्सा होकर चीखना-चिल्लाना आपकी बेबसी और असमर्थता प्रतीत करता है|
आपके चिल्लाने से आप ही के आचरण को ग़लतमाना जाएगा:

कई बार आपके गुस्सा होने पर या तेज़ आवाज़ में बात करने पर आपके बच्चे ये सोचने लग जाएँगें क़ि आप ही का स्वभाव गुस्से वाला है| इससे वे आपसे और दूरी बना सकते हैं| इसलिए अपने बच्चों को प्रेम से उनके अच्छे- बुरे की पहचान करवायें और याद रखें की मुश्क़िलों का हल शांतिपूर्वक भी निकाला जा सकता है|

क्योंकि हर माँ-बाप यही चाहता है क़ि बड़ा होकर उनका बच्चा सभ्य आचरण का हो
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