Praan

》 हम जब श्वास लेते हैं तो भीतर जा रही हवा या वायु पांच भागों में विभक्त हो जाती है या कहें कि वह शरीर के भीतर पांच जगह स्थिर हो जाता हैं।

ये पंचक निम्न हैं- (1)व्यान, (2)समान, (3)अपान, (4)उदान और (5)प्राण।

उक्त से ही चेतना में जागरण आता है और स्मृतियां सुरक्षित रहती है। इसी से मन संचालित होता है तथा शरीर का रक्षण व क्षरण होता रहता है।

उक्त में से एक भी जगह गड़बड़ है तो सभी जगह उससे प्रभावित होती है और इसी से शरीर, मन तथा चेतना भी रोग और शोक से ‍घिर जाते हैं।

चरबी-मांस, आंत, गुर्दे, मस्तिष्क, श्वास नलिका, स्नायुतंत्र और खून आदि सभी प्राणायाम से शुद्ध और पुष्ट रहते हैं।

(1) व्यान : व्यान का अर्थ जो चरबी तथा मांस का कार्य करती है।

(2) समान : समान नामक संतुलन बनाए रखने वाली वायु का कार्य हड्डी में होता है। हड्डियों से ही संतुलन बनता भी है।

(3) अपान : अपान का अर्थ नीचे जाने वाली वायु। यह शरीर के रस में होती है।

(4) उदान : उदान का अर्थ उपर ले जाने वाली वायु। यह हमारे स्नायुतंत्र में होती है।

(5) प्राण : प्राण वायु हमारे शरीर का हालचाल बताती है। यह वायु मूलत: खून में होती है।

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