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गीता के आठवें अध्याय में श्री कृष्ण ने कहा है- “ओमित्येकाक्षरं ब्रहम:”l यह एकाक्षर मंत्र ओम ब्रहम: इशवर का प्रतीक हैl इस अक्षर रूप ब्रहम का उचारण करता हुआ और उसके अर्थ स्वरूप मुज निर्गुण ब्रहम का चिंतन करता हुआ जो प्राणी शरीर त्यागकर जाता है वह परमगती को प्राप्त होता है अर्थ-परंम ब्रहम स्वरूप को प्राप्त होकर संसार के कर्म बंधन से छूट जाता हैl यह केवल शब्दरूप नही है बल्की त्रिदेव – ब्रह्मा, विषनु, महेश इसी में स्थित हैं तथा ये देव मूर्ति के समान हैंl जप, तप, याग्य, कर्म के आरंभ व अंत में इसका प्रयोग होता है l इसका किया जाना ईश्वर के नाम का स्मरण करने क ही घोतक है l वेद मंत्रों का उचारण जप, यग्य आदि क्रिया करने वाले शस्त्रज ओम ईस परमात्मा के नाम का उचारण करके प्रारंभ व अंत करते हैं l   इसे ही “ओंकार” कहा जाता है l ओम का गान ईश्वर की स्तुति के समान है l   संपूर्ण जीव प्राणियों में सत्चेतना, आनंद रूप में यही विद्यमान है l सूर्य रूप में साक्षात हम नितय उसका दर्शन करते हैं राम कृष्ण के रूप में हर युग में विश्व कल्याण के लिये उपस्थित या जन्म लेता है ऊँ l जड़ चेतन में व्याप्त प्राण है ऊँ l जब हम ऊंचे स्वर में मंत्रो और श्लोकों का पाठ करते हैं तो यह अवाज तरंगो के मध्यम से ईश्वर तक पाहुचती है l और पुन: तरंगे लौटकर प्राणी जगत को प्रभावित करती हैं l   ऊँ का उचारण मात्र काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह तथा ईर्ष्या आदि दोशों से मुक्ति देने में अत्यनत प्रभावि है l   आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में ऊँ के जप प्रयोग किये गये हैं l ऐसा देखा गया है, ध्यान योग से कैन्सर जैसे रोगों में भी रोगी की दशा में सुधार देखा गया है l लेकिन यह सब पूर्ण मनयोग के द्वारा ही संभव है l निश्चय ही “ऊँ” का जाप सकल्याण,विश्व शांति और विश्व कल्याण हेतु आवश्यक है l

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